धान फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक

उन्नत प्रभेद: अच्छेऊपज के लिए सुभास, सुगंध, एम.टी.यू. 7029, एरिज़ 6444 गोल्ड या कोई अन्य किस्म, जो स्थानीय मौसम, ग्राहक की माँग व बाजार के अनुरूप हो, वैसे प्रभेद का ही चुनाव करना चाहिए.

प्रभेदेंसंस्थान/ कम्पनीप्रभेदों की विशेषताएँ
सुभासएन. आर. आर. आई., कटकअवधी: 142 दिन प्रतिरोधक: तना छेदक, फतिंगा और कुछ हद तक वायरस ऊपज: 6-6.5 टन/ हेक्टेयर
सुगंधाएन. आर. आर. आई., कटकअवधी: 145 दिन प्रतिरोधक: बैक्टेरियल लीफ ब्लास्ट ऊपज: 4.5-5 टन/ हेक्टेयर
सी.आर. धान 310एन. आर. आर. आई., कटकअवधी: 125 दिन दाना: अधिक प्रोटीन मात्रा ऊपज: 4.5-5 टन/ हेक्टेयर
एरिज़ 6444 गोल्ड (संकर)बायर क्रॉप साइंस, इंडियाअवधी: 140 दिन प्रतिरोधक: बैक्टेरियल लीफ ब्लास्ट ऊपज: 7-8 टन/ हेक्टेयर
एम.टी.यू. 7029ए.एन.जी.आर.यू., हैदराबादअवधी: 145 दिन प्रतिरोधक: बैक्टेरियल लीफ ब्लास्ट ऊपज: 5.5-6 टन/ हेक्टेयर

मौसम: क्षेत्रीय प्रचालन के अनुसार

बीज दर: 6-8कि.ग्रा. प्रति एकड़

मिट्टी: भारी मिट्टी से लेकर रेतीली-दोमट मिट्टी (pH: 5.0 – 8.0) उपयुक्त

बीज उपचार: धान के बीज को फफूँदनाशक घोल (बावस्टिन या एमीसान 1ग्रा./ कि.ग्रा.धान का बीज + स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.1ग्रा./ कि.ग्रा. की दर से प्रयोग करें) में 12-से-24 घंटे भिंगो कर रखें. बीज उपचार के लिए पानी की मात्रा बीज की मात्रा के बराबर होनी चाहिए.

दूरी: पौध से पौध की दूरी 15 सें. मी. एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सें. मी. रखें. अच्छे पैदवार के लिए, 18-22 दिनों के बिचड़े का रोपाई करें. एक जगह पर दो बिचड़े लगायें.

उर्वरक प्रबंधन: किलोग्राम /एकड़

समययूरियाडी.ए.पी.पोटाशजिंक
रोपाई के समय15-2040-5015-18 
रोपाई के 3 सप्ताह बाद30-35  5-8
रोपाई के 6 सप्ताह बाद30-35 10-12 
  • दीमक और थ्रिप्स प्रभावित खेतों में, 3-4 कि. ग्रा. रीजेंट (फ़िप्रोनिल) जी.आर. को अंतिम जुताई के समय अवश्य डालें.
  • उर्वरकों (यूरिया, डी.ए.पी. और पोटाश) की निचली सीमा कम अवधि वाले तथा ऊपरी सीमा लम्बी अवधि वाले धान के लिए प्रयोग करें.

निराई-गुड़ाई: रोपनी के 20-25 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करने के बाद, जब ढेला पक जाता है तो सिंचाई कर उरिया का उपरिवेशन करें

सिंचाई: रोपाई के 2-3 दिनों बाद से लेकर कुछ दिनों तक खेत में कम-से-कम 4-5 सें.मी. पानी लगायें ताकि घास कम निकल पाये. सूखा और नमी में, ऐसा ताल-मेल बिठायें ताकि खेत में दरार नहीं पड़े.

खरपतवार प्रबंधन: रोपाई के समय/ घास निकलने से पहले- टॉपस्टार, 45 ग्रा./एकड़ या सोफिट, 650 मिली/एकड़

रोपाई के 20-25 दिनों बाद- नॉमिनी गोल्ड, 100 मिली/ एकड़ (मोथा अधिक होने पर साथी, 80 ग्रा./एकड़, मिलाकर स्प्रे करें)

कटाई: धान की बालियाँ पकने के बाद सुनहरे रंग की दिखती है. फसल की कटाई हसिया या मशीन से करा लें. उसके बाद दानों को थ्रेसर या हाथों से पीटकर पुआल से अलग कर लिया जाता है. आजकल कटाई एवं दानों को अलग करने का काम हार्वेस्टर से किया जा रहा है.

भण्डारण: कटाई के समय दानों में नमी की मात्रा अधिक होती है. अतः अनाज को धुप में सुखाकर भण्डारण करें. वरना धान फफूँद के कारण काला होकर ख़राब हो सकता है.

ऊपज: 18-35 क्विंटल/ एकड़; ऊपज कई चीजों पर निर्भर करती है, अतः ये घट-बढ़ सकती है.

धान के मुख्य रोग एवं कीट तथा उनका नियंत्रण:

  1. कीट: तना छेदक

   लक्षण: यह रोग फसल के किसी भी अवस्था में हो सकता है. इसमें मुख्य तना सूखकर पुआल की तरह हो जाता है. सूखे हुए तने को बहुत आसानी से खीचकर अलग किया जा सकता है. यही इस बीमारी की पहचानने का तरीका है.

उपचार: रीजेंट एस.सी.; 1 मिली/ली या कैलडान 50 एस.पी.; 2 मिली/ली या रीजेंट जी.आर.; 3-4 कि.ग्रा./एकड़

  • बीमारी: फाल्स स्मट/ हरदा

   लक्षण: हरदा रोग को लेढा रोग भी कहते हैं. जब धान की बालियों पर काला, हरा या पीला रंग का गोल लुग्धा दिखे तो समझ जाइये कि बीमारी लग चुका है. यह एक फफूँदजनित रोग है.

उपचार: टिल्ट; 1 मिली/ली या धन; 1 मिली/ली या विजेता; 1 मिली/ली

  • कीट: गंधी बाग

   लक्षण: धान की बालियाँ निकलते समय गंधी कीट का प्रकोप होता है. यह धान के दानों से दूध चूस जाता है, जिससे धान खाखडी/ पाईया होकर सूख जाता है. धूल वाले दवा का भुरकाव सुबह यानी शीतकाल में करें ताकि दवा पत्तियों पर चिपक जाये.

उपचार: फोलिडोल धूल; 2.5-3 कि.ग्रा./एकड़ या करटाप धूल; 2.5-3 कि.ग्रा./एकड़

  • बीमारी: झुलसा/ ब्लास्ट

   लक्षण: यह एक बहुत ही भयावह फफूँदजनित बीमरी है. जिसमें पत्तियों के ऊपर भूरा अंडाकार धब्बा बन जाता है और उसके बीच में लाल निशान भी दिखता है. उरिया खाद ज्यादा मात्रा में प्रयोग नहीं करें. खेत से पानी निकाल कर कभी गीला तो कभी सूखा करते रहें. समय रहते ही रोग से निपटने की कोशिश करें.

उपचार: कनटाफ प्लस; 1-1.5 मिली./ ली या फोलिक्योर; 1-1.5 मिली/ ली या क्रिलैक्सिल; 2.5 ग्रा./ ली.

  • कीट: फतिंगा/बी.पी.एच./डब्लू.पी.एच.

   लक्षण: कभी-कभीधान को फतिंगे/ टिड्डे बहुत नुकसान पहुँचाते हैं. ये पत्तियों को खाकर तहाश-नहश/ छिन्न-भिन्न कर देते हैं. यदि समय रहते, इन्हें नहीं नियंत्रित किया गया तो ये वायरस से होने वाले बीमारियाँ फैला देते हैं. जिससे पूरे फसल भूरा-लाल हो जाता है और तब धान को बचा पाना मुश्किल हो जाता है.

उपचार: एप्पल 25 एस.सी.; 2 मिली/ली या कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या कोरंडा 505; 0.2 ग्रा./ ली.

  • कीट: दीमक

लक्षण: यहहल्के पीला/ सफेद रंग का छोटे कीट होते है, जो अधिकतर बलुई मिट्टी वाले खेतों में पाए जाते हैं. बलुई खेतों में नमी बहुत जल्द भाग जाता है और यही वजह है कि जिस खेत में नमी हमेशा बरक़रार रहती है, उसमें दीमक नही लगते हैं. अतः खेत की हल्की सिंचाई कर, फसल में दीमक का दवा छिड़काव करें.

उपचार: डर्सबान; 1 मिली/ली या रीजेंट एस.सी.; 1 मिली/ली या कमान; 1 मिली/ली,