पशुओं के प्रजनन सम्बंधित रोग

पशुपालन एक अच्छा व्यवसाय है, जिसे ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में भी किया पसंद किया जाता है.
इसे लाभकारी बनाने के लिए, पशु के एक बियान (ब्यात) से दूसरे बियान के बीच 12-13 महीने का अन्तराल
होना चाहिए. परन्तु आज कई कारणों से पशुओं में बियान का अन्तराल बढ़ता जा रहा है, जोकि पशुपालकों को
हतोत्साहित करता है. बियान के अन्तराल का बढ़ना, व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी अच्छा नहीं होता है. पशुओं
के कई प्रजनन सम्बन्धी समस्यायें हैं जो उनके प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे पशुओं में वांझपन
के शिकायत आने लगते हैं. यदि पशुपालक पशुओं के प्रजननहीनता के कारण को समझें और निदान का प्रयास
करें तो दूध उत्पादन दर को और बढ़ा सकता है. पशुओं के वांझपन के कई कारण है जैसेकि:

  1. गर्भपात
  2. अंडाशय में सिस्ट
  3. अमदकाल (गर्म न होना)
  4. पशुओं में जेर (खेढ़ी) रुकने की समस्या
  5. बार-बार गाभिन कराने के बाद भी गर्भ न रुकना
  6. गर्भपात: पशुओं में प्रजननहीनता का एक प्रमुख कारण गर्भपात भी हो सकता है, जिससे पशुपालक
    व्यवसायिओं को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचता है. गर्भकाल पूरा होने से पहले, मृत अथवा चौबीस घंटे से
    कम जीवित रहने वाले भूर्ण की अवस्था की स्थिति गर्भपात कहा जाता है. भैंसों में गर्भपात की समस्या
    गायों की अपेक्षा कम होता है. निम्नलिखित कारणों से गर्भपात हो सकता है:
    (1) असंक्रामक कारक: गर्भपात के संक्रामक कारकों में जीवाणु, विषाणु, प्रोटोज़ोआ और फफूँद आते हैं. सही
    मायने में देखा जाये तो गर्भपात के वास्तविक कारण को मालूम करना बहुत ही मुश्किल काम है.
    संक्रामक कारकों में से 2-9 प्रतिशत गर्भपात जीवाणु बरुसेला एबोर्टस से होता है. ऐसे जीवाणुओं के
    वजह से गर्भपात 3 महीने के भीतर ही हो जाता है. फफूंदों के कारण गर्भपात 5-7 माह के बीच में
    होता है. इसमें शिशु शरीर के अन्दर या पैदा होने के बाद मर जाते हैं. प्रोटोज़ोआ के कारण से, पशुओं
    में गर्भपात 2-3 माह के अन्दर ही हो जाता है. लेप्टोस्पाईरा पोमना नामक स्पीरोकीट से भी गर्भावस्था
    के आखिरी तीन महीने में गर्भपात होता है.
    (2) संक्रामक कारक: गर्भावस्था के समय लम्बी यात्रा करना, लड़ना, दौड़ना इत्यादि से गर्भपात हो सकता है.
    इसके अलावे कुपोषण, रसायनिक या जहरीले पदार्थ, अनुवांसिक कारक, एलर्जी तथा पशु के शरीर में
    हार्मोन्स के असंतुलन से भी गर्भपात हो सकता है.
  7. अंडाशय में सिस्ट: भैंसों में यह समस्या गायों की तुलना में कम होती है, क्यूंकि भैंसों में दूध उत्पादन का
    तनाव गायों से कम होता है. पशु के अंडाशय में सिस्ट होने की सही जानकारी सिर्फ पशु-चिकिस्तक ही
    परिक्षण के जरिये बता सकते है. यह दो प्रकार के होता है:
    (1) ल्यूटिनीकृत सिस्ट: इस अवस्था में डिम्बक्षरण नहीं होता है परन्तु डिम्बाशाय पर ल्यूटिनीकृत सिस्ट
    होने के कारण पशु गर्म होने यानि अमदकाल का लक्षण प्रदर्शित करता है.
    (2) ग्राफियन सिस्ट: भैंसों में गायों के तुलना में ये लक्षण कम दिखाई देते हैं. इस स्थिति में भी डिम्बक्षरण
    नहीं होता है. मादा पशु जल्दी-जल्दी गर्म होते रहती है.
  8. अमदकाल (गर्मी न आना): देशी गाय की बछिया 24-36 महीने में और विदेशी गाय की बछिया 12-14
    महीने वयस्क हो जाती है. पशुओं के गर्भ धारण करने योग्य होने का उम्र नस्ल पर निर्भर करता है. भैसों
    की वयस्क होने की उम्र 36 महीने की होती है. पशुओं को अपने उम्र पर गर्मी न आना एक समस्या है.
    ऐसे में पशु को संतुलित आहार दें जैसेकि दाना, हरी घास इत्यादि. साथ-ही-साथ पशु के अंतः परजीवी को
    नियंत्रित करने के लिए साल में 6 महीने के अन्तराल पर कृमिनाशक दवा देनी चाहिए. पशु के शरीर पर
    लगे परजिविओं जैसेकि किलनी, जूं, अठाई इत्यादि से निपटने के लिए साईंपरमेथ्रिन (2 मिली./लीटर) को
    पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. अमदकाल 3 अवस्थाओं में हो सकता है:
    (1) असामान्य मदकाल: कई पशुओं में गर्मी के लक्षण स्पष्ट नहीं दिखता है. इसका अर्थ यह हुआ की वह
    पशु असामान्य मदकाल के समस्या से जूझ रहा है. भैंसों में यह समस्या गायों से ज्यादा देखा गया है. ऐसे
    में पहले भैस को सान्ड के पास छोड़ दें, वह आसानी से मदकाल को पता लगा लेता था किन्तु आज कृत्रिम
    गर्भाधान के समय में पशुपालकों को स्वयं पशु के गर्मी को पता लगाना पड़ता है. अक्सर भैंसे सर्दियों में
    गर्मी पर आती है और इसीलिए यह समय गर्भाधान के उचित होता है. असामान्य मदकाल के शिकायत होने
    पर पशु-चिकितिस्क से सम्पर्क करें.
    (2) अंडाशय पर कार्पस ल्युटियम की उपस्थिति: अंडाशय पर कार्पस ल्युटियम पाये जाने के अवस्था में, पशु
    के गाभिन होने के दशा में भी मदकाल के लक्षण दिखाई देते हैं. इस तरह के समस्या पशुओं में बहुत
    ज्यादा देखने को मिलती है. पशुपालक, ऐसे स्थिति में पशु-चिकितिस्क से स्मपर्क करके पशु के गाभिन
    होने का सही स्थिति का पता लगवाएं.
    (3) अंडाशय पर कार्पस ल्युटियम की अनुपस्थिति: इस तरह के अवस्था में अंडाशय पर कार्पस ल्युटियम
    नहीं होता है. इसका एक वजह कुपोषण हो सकता है. ऐसे में पशु को चारा के साथ-साथ 50 ग्रा. मिरनल
    मिक्चर तथा समान मात्रा में नमक अवश्य खिलाएं. पशु को गर्मी में लाने के लिए तिल, गुड़, तेल, मेथी
    इत्यादि खिलना लाभकर होता है. साथ-ही-साथ पशु को पशु-चिकिस्तक के मदद से कृमिनाशक दवा भी
    खिलाएं.
  9. पशुओं में जेर रुकने की समस्या: आमतौर से पशुओं के ब्याने (प्रसव) के कुछ घंटों बाद ही खेढ़ी (जेर) स्वतः
    बहार निकल जाती है, परन्तु यदि ब्याने के 8-से-12 घंटे बाद भी खेढ़ी बहार नहीं निकले तो ऐसे स्थिति

को खेढ़ी रुकना कहते हैं. ब्याने के बाद खेढ़ी रुकने के कई कारण है, जिसमें गर्भपात, कई संक्रामक
बीमारियाँ इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं.
खेढ़ी रुकने के लक्षण:

  1. पशु के भूख में कमी
  2. जेर को घुटने तक लटके रहना
  3. पशु के योनी के रास्ते बदबूदार स्राव का निकलना
  4. पशु को बुखार आना:
    खेढ़ी रुकने सम्बंधित समस्याओं से निपटने के लिए पशु-चिकित्सक से सलाह अवश्य लें वरना पशु को
    प्रसव के बाद गर्मी आने में देरी हो सकती है. पशुपालक को लटके हुए जेर पर बल का प्रयोग नहीं करना
    चाहिए, इससे पशुओं के शरीर को नुकसान पहुँचता है.
  5. बार-बार गाभिन कराने के बाद भी गर्भ न रुकना: पशुपालकों के लिए बड़ी समस्या तब खड़ी हो जाती है,
    जब बार-बार गाभिन कराने के वावजूद भी पशु गर्भ धारण नहीं करती है. इसे रिपीट ब्रीडिंग कहते हैं. इस
    तरह की समस्या पशुओं में 20-25 प्रतिशत तक देखा गया है. इस समस्या का पहला मुख्य कारण 16
    दिन के भ्रूण की मृत्यु तथा दूसरा समय पर निषेचन न होना या पोषक तत्वों के कमी का होना इत्यादि.
    यदि रिपीट ब्रीडिंग बहुत सारे पशुओं में हो रहा हो तो इसका वजह वीर्य, सांड या पशुओं के दिया जाने वाला
    चारा/ आहार हो सकता है. ऐसी स्थिति में पशु-चिकित्सक से सलाह अवश्य लें. और यदि एक-दो पशुओं में
    पाया गया हो तो इसके दूसरे कारण भी हो सकते हैं जैसे- अत्यधिक गर्म मौसम, बच्चेदानी में इन्फेक्शन
    इत्यादि. पशुपालन में गर्भाधान का समय बहुत महत्व रखता है. इसलिय, पशु के गर्म होने के सही समय
    को पहचान कर ही गर्भाधान कराएँ, वरना गर्भ न ठहरने की समस्या हो सकती है. ऐसे में पशुपालक ध्यान
    दें, यदि सुबह गर्मी में आये तो शाम को और यदि शाम को गर्म हो तो अगले दिन सुबह गर्भधान अवश्य
    करा दें. गर्भकाल के अवस्था में पशुओं के पालन-पोषण पर विशेष ध्यान देना चाहिए.