करेला फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक
उन्नत प्रभेद: अच्छेऊपज के लिए अर्का हरित, प्रिया, एम. डी. यू.-1, सी. ओ.-1, पाली, विवेक, अभिमन्यु या कोई अन्य किस्म, जो स्थानीय मौसम, ग्राहक की माँग व बाजार के अनुरूप हो, वैसे प्रभेद का ही चुनाव करना चाहिए.
प्रभेदें | संस्थान/ कम्पनी | प्रभेदों की विशेषताएँ |
अर्का हरित | आई. आई. एच. आर., बैंगलोर | फल की लम्बाई: 15-17 सेमी. फल का रंग: उजला हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 45-50 दिनों बाद से ऊपज: 45-50 क्विंटल/ एकड़ |
प्रिया | आई. ए. आर. आई., नई दिल्ली | फल की लम्बाई: 25-30 सेमी. फल का रंग: हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 50-55 दिनों बाद से ऊपज: 45-60 क्विंटल/ एकड़ |
एम. डी. यू.-1 | टी. एन. ए. यू., कोयम्बटूर | फल की लम्बाई: 30-40 सेमी. फल का रंग: उजला हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 55-60 दिनों बाद से ऊपज: 120-140 क्विंटल/ एकड़ |
सी. ओ.-1 | टी. एन. ए. यू., कोयम्बटूर | फल की लम्बाई: 30-35 सेमी. फल का रंग: गहरा हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 50-55 दिनों बाद से ऊपज: 50-60 क्विंटल/ एकड़ |
पाली | ईस्ट वेस्ट सीड्स प्रा. लि., औरंगाबाद | फल की लम्बाई: 30-35 सेमी. फल का रंग: गहरा हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 55-60 दिनों बाद से ऊपज: 140-160 क्विंटल/ एकड़ |
विवेक | सेमिनिस वेज. सीड्स लि., औरंगाबाद | फल की लम्बाई: 20-26 सेमी. फल का रंग: गहरा हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 50-60 दिनों बाद से ऊपज: 80-100 क्विंटल/ एकड़ |
अभिमन्यु | श्रीराम बायो सीड्स, हैदराबाद | फल की लम्बाई: 30-32 फल का रंग: हरा पहली तोड़ाई: बुआई के 60-65 दिनों बाद से ऊपज: 100-120 क्विंटल/ एकड़ |
बुआई का समय: अगेती फ़सल (जून- जुलाई); मुख्य फ़सल (सितम्बर-अक्टूबर); गरमा फ़सल (जनवरी-फरवरी)
बीजदर: 700-800ग्रा. प्रति एकड़
बीज उपचार: करेला के बीज को 10-12 घंटे तक पानी में भिंगोयें, उसके बाद पानी से छान लें. फिर ट्रायकोडर्मा (5-6 ग्रा./ 50 मिली. यानि आधा कप पानी में) या कार्बेन्डाज़िम (2-3 ग्रा./ 50 मिली.) या अन्य फफूंदनाशी का घोल बना लें. अब तैयार घोल को 1 कि.ग्रा. बीज के ऊपर डालकर, अच्छी तरह से मिला दें. उसके बाद बीज को छायेदार जगह पर 40-से-45 मिनट के लिए रख दें. उसके बाद बीज को खेत में बुआई कर दें.
दूरी: कतार से कतार 2 मी. तथा पौध से पौध 1-1.5 मी.
नोट: एक जगह पर कम-से-कम पांच बीज, 2-3 सेमी. गहराई में लगायें. अंकुरण सुनिश्चित होने पर, उनमें से दो पौधे को हटा दें.
मिट्टी: अच्छे जल निकास वाली कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई, दोमट मिट्टी (पी.एच.6.5-7.5) फ़सल के लिए उपयुक्त है.
खेत की तैयारी:
- खेत में 20-से-25 दिन पहले, 5-6 टन/ एकड़ की दर से गोबर खाद डालें और उसके बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं
- बीज रोपाई से पहले, खेत की अच्छी तरह से 3-4 गहरी जुताई कर लें ताकि मिट्टी भुर-भूरा व मुलायम हो जाए.
- खेत की अंतिम जुताई से पहले, यदि मिट्टी में फॉस्फेट को घुलनशील करने वाले बैक्टेरिया (बैसिलस मेगाटेरीयम), 1 कि.ग्रा./ एकड़ तथा ट्रायकोडर्मा, 1-1.5 कि.ग्रा./ एकड़ डाला जाये, तो पौधे तंदुरुस्त एवं रोग मुक्त होते हैं. ट्रायकोडर्मा लौकी के फसल को फफूंदजनित बीमारी से बचाने में कारगर साबित हो रहा है.
- बीज बुआई के समय खेत में भरपूर नमी होना चाहिए.
सिंचाई: खेत की नमी को ध्यान में रखते हुए, गर्मी में 5-7 दिनों बाद तथा बरसात में 15-20 दिनों पर सिंचाई करें.
उर्वरक प्रबंधन: किलोग्राम/ एकड़
समय | यूरिया | डी.ए.पी. (डाई) | पोटाश |
बुआई के समय | 20-30 | 35-40 | 20-23 |
बुआई के 25 दिन बाद | 30-35 | 15-20 | 10-12 |
बुआई के 50 दिन बाद | 30-35 | — | — |
खरपतवार व्यवस्थापन:
- बीज रोपाई के बाद, घासनाशक (1 ली. पेंडीमिथिलिन को 9 ली. पानी में मिलायें, अब 10 ली. का घोल तैयार है. इसमें से 1 ली. घोल और 14 ली. पानी लें, फिर इसे 15 ली. वाले टंकी के स्प्रेयर मशीन से छिड़काव करें. इस तरह से एक एकड़ के लिए, आपको 10 बार यानी 150 ली. पानी का छिड़काव करना पड़ेगा) का छिड़काव करें.
- पौध लगाने के ठीक 30-35 दिनों के बाद, शेष खरपतवार को निकौनी कराकर निकाल दें.
- पलवार/ मलचिंग विधि का उपयोग कर, फसल में उगने वाले खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है.
तोड़ाई एवं छंटाई: बुआई के 50-से-60 दिनों के बाद, करेला के फल की तोड़ाई किया जा सकता हैं. छोटे फल से बाजार भेजने लायक फल बनने में 4-5 दिन लग जाते हैं. ज्यादातर ग्राहक नाजुक करेला का फल पसंद करते है. बाजार की माँग व दूरी, आकार (लम्बा, पतला या छोटा), रंग (हरा, सफेद हरा तथा गहरा हरा) को ध्यान में रखते हुए करेला के फलों की छंटाई करनी चाहिए. टेढ़े-मेढ़े एवं पीले फलों को छाँट कर अलग रख लें. ऐसे करेला के फलों को बाजार में नहीं ले जाना चाहिए. करेला को बाजार तक पहुचाने के लिए बाँस की टोकरी, कैरेट, जूट या प्लास्टिक के बोरे का प्रयोग करना चाहिए.
तोड़ाई के बाद का रख-रखाव: करेला को सामान्य तापक्रम पर, गर्मी में एक-से-दो दिनों तथा सर्दी में तीन-से-चार दिनों तक छाये में रखा जा सकता है. शीतगृह में, करेला को 10-12.5°C पर 8-10 दिनों तक भंडारण किया जा सकता है. करेला भंडारण के लिए 85-90 प्रतिशत आर्दता की जरुरत होती है.
उपज: 80-150 क्विंटल/ एकड़
नोट: लतरवर्गीय फसलों के लिए मचान या अलान विधि का उपयोग करना लाभप्रद होता है. इससे फसल के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ फलों के गुणवत्ता में भी सुधार लाया जा सकता है. मचान विधि को अपनाकर, बरसाती लतरवर्गीय फसलों के फलों को सड़ने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
यदि करेला के पौध का बढ़वार ज्यादा हो रहा हो, शाखाओं की संख्या कम हो या फल नहीं लग रहा हो, तो पौध के सबसे अग्र भाग (फूनगी) को काट दें. ऐसा करने से शाखाओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ फलन भी होने लगता है.
करेला के मुख्य कीट एवं रोग तथा उनका नियंत्रण:
- बीमारी: फल मक्खी/ फ्रूट फ्लाई
लक्षण: फल मक्खी करेला के फल में छिद्र कर, फल को संक्रमित कर देती है, जिससे वजह फल में कीड़े पड़ जाते हैं. फल पीले होकर फट जाते हैं. फल मक्खी फफूँद रोग को भी बढ़ावा देती है. फफूँद से प्रभावित पत्तियाँ तेजी से पीली पड़ने लगती है और अंततः सूख कर गीर जाती है. अतः रोग को समय रहते ही नियंत्रण करना चाहिए.
उपचार: ओबेरौन; 1मिली/ ली. या कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या मार्कर; 2 मिली./ ली. या उलला; 0.25 ग्रा./ ली. या अन्य
- बीमारी: चूर्णिल आसिता/ भभूतिया रोग/ पाउडरी मिल्डेव
लक्षण: यह फफूँद से होने वाला रोग है, जिसमें पतियों पर सफ़ेद धब्बे बन जाते हैं. संक्रमित पौध का विकास रुक जाता है. यदि समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो पतियाँ सुख जाती है.
उपचार: अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली. या अन्य
- बीमारी: एफिड/ माहू
लक्षण: यहहल्के पीला रंग का, मुलायम शारीरवाला, बहुत ही छोटा कीट होता है. इसके पिछले हिस्से पर दो छोटे-छोटे डंक जैसा निकला रहता है. ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं, जिसके कारण से पत्तियाँ पीली होकर सिकुड़ती है फिर सूख जाती है. एफिड अपने ग्रंथियों से चीनी जैसा मीठा रस निकलते हैं, जिससे फफूँद रोग को बढ़ावा देता है.
उपचार: कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या जम्प; 0.2 ग्रा./ ली. या रोगारिन; 1-1.5 मिली/ ली. या उलला; 0.25 ग्रा./ ली.
नोट: खेतों पीले रंग का लसलसा जाल (स्टीकी ट्रैप), 10 ट्रैप/ एकड़, लगाना लाभप्रद होता है.
- बीमारी: चितकबरा भृंग/ बीटल्स
लक्षण: वयस्क एव ग्रब दोनों ही पत्तियों के ऊपरी सतह को खाकर केवल नसों को छोड़ देते है. पत्तियाँ जालीदार हो जाती हैं, जिससे पौध का विकास रुक जाता है. यह कीट फसल को भारी नुकसान पहुँचाता है.
उपचार: टाटाफेन;1-2 मिली./ ली या लिथल सुपर 505; 1-1.5 मिली./ली या सोलोमन; 1-1.5 मिली./ली इत्यादि
- बीमारी: डावनी मिल्डेव
लक्षण: यह एक तेजी से फैलने वाली बिमारी है. प्रारंभिक अवस्था में, पत्तियों के ऊपरी सतह पर हल्के पीले रंग का बड़ा कोणीय धब्बा दिखाई देता है. बीमारी के अगले अवस्था में, ये धब्बे तेजी से फैलते है, जिसके वजह से पत्तियों का रंग भूरा हो जाता है. संक्रमित पत्तियों के निचले सतह पर पानी से भींगा हुआ प्रतीत होता है.
उपचार:. एलियट; 1.5-2 3 ग्रा./ ली या टिल्ट; 1-1.5 मिली./ ली. या अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अन्य
करेला के फ़सल पर रोगनिरोधी/ रोग निवारक छिड़काव: नीचेतालिका में बताये गये समय तथा क्रांतिक अवस्थाओं पर सूक्ष्म-पोषक, दवा, पौध टॉनिक इत्यादि का छिड़काव कर करेला की खेती में आने वाले लागत खर्च को कम किया जा सकता है. रोगनिरोधी/ रोग निवारक छिड़काव कर, फसल को लम्बे समय तक फलदार तथा निरोग रखा जा सकता है.
छिड़काव का समय | उद्देश्य | सूक्ष्म-पोषक/ दवा/ पौध टॉनिक |
पौध निकलने के 10-15 दिनों बाद | रोग वाहक कीटों पर नियंत्रण | विक्टर; 0.75-1 मिली/ ली. या लिथल सुपर; 1-1.5 मिली/ ली. या कॉन्फीडोर; 0.75-1 मिली/ ली. या अन्य |
फूल निकलने की अवस्था में | पुष्प धारण क्षमता बढ़ाने में | प्लानोफिक्स; 0.2 मिली./ ली. या मिराकुलान; 1-1.5 मिली. + बोरान 35 मिली ग्रा./ ली. या अन्य |
पहली तोड़ाई के बाद (2-3 बार, 15-20 दिनों के अंतराल पर) | बार-बार तोड़ाई से पौध में उर्जा की कमी को पूरा करने के लिए | एन.पी.के.(19:19:19); 4-5 ग्रा./ ली. |
रोपाई के 50-60 दिनों बाद | रस-चुसक कीट पर नियंत्रण के लिए | ओबेरौन; 1मिली/ ली. या कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या मार्कर; 2 मिली./ ली. या अन्य |
फल लगने के 20-25 दिनों बाद | फफूँद रोग से बचाव के लिए | अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली. |
नोट:एक एकड़ के छिड़काव के लिए, 150-200 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है.