टमाटर फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक
उन्नत प्रभेद: अच्छेऊपज के लिए पूसा अर्ली ड्वार्फ, रॉकी, अभिलाष, वरुणा, नायक, अर्का रक्षक या कोई अन्य किस्म, जो स्थानीय मौसम, ग्राहक की माँग व बाजार के अनुरूप हो, वैसे प्रभेद का ही चुनाव करना चाहिए.
प्रभेद | संस्थान/ कम्पनी | प्रभेद की विशेषताएँ |
अभिलाष | सेमिनिस वेज. सीड्स लि., महाराष्ट्र | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: नियत, 3-4 फीट फल का आकार, रंग व वजन: गोल, लाल, 90-100 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 60-65 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: वायरस/ पर्ण कुंचन के प्रति सहनशील ऊपज व भंडारण क्षमता: 16-18 टन/ एकड़; उत्तम |
वरुणा | नुज़िवीडू सीड्स, हैदराबाद | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: अर्द्ध-नियत, 3-5 फीट फल का आकार, रंग व वजन: चपटा गोल, लाल, 175-200 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 55-60 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: वायरस/ पर्ण कुंचन के प्रति सहनशील ऊपज व भंडारण क्षमता: 13-15 टन/ एकड़; उत्तम |
नायक | कलश सीड्स प्रा. लि., महाराष्ट्र | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: अर्द्ध-नियत, 3-5 फीट फल का आकार, रंग व वजन: चपटा गोल, लाल, 100-120 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 60-65 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: वायरस/ जीवाणु झुलसा के प्रति सहनशील ऊपज व भंडारण क्षमता: 15-16 टन/ एकड़; उत्तम |
पूसा अर्ली ड्वार्फ | भा. कृ. अनु. सं., नई दिल्ली | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: नियत, 3-4 फीट फल का आकार, रंग व वजन: चपटा गोल, लाल, 75-80 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 50-55 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: पर्ण कुंचन के प्रति सहनशील ऊपज व भंडारण क्षमता: 14-15 टन/ एकड़; उत्तम |
अर्का रक्षक | आई. आई. एच. आर., बैंगलोर | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: अर्द्ध-नियत, 3-5 फीट फल का आकार, रंग व वजन: वर्गाकार-गोल, लाल, 90-100 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 60-65 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: वायरस/ जीवाणु झुलसा/ झुलसा रोधी ऊपज व भंडारण क्षमता: 24-32 टन/ एकड़; उत्तम |
रॉकी | सिनजेनटा इंडिया लि., हैदराबाद | प्रभेद का प्रकार व ऊंचाई: नियत, 3-4 फीट फल का आकार, रंग व वजन: चपटा गोल, लाल, 80-100 ग्रा. फल तोड़ाई: पौध लगाने के 55-60 दिनों बाद से रोग प्रतिरोधक क्षमता: वायरस/ पर्ण कुंचन के प्रति सहनशील ऊपज व भंडारण क्षमता: 16-18 टन/ एकड़; उत्तम |
बुआई का समय: अगेती फ़सल (जून- जुलाई); मुख्य फ़सल (सितम्बर-अक्टूबर); गरमा फ़सल (नवम्बर-दिसम्बर)
बीजदर: संकर; 60-70 ग्रा. प्रति एकड़, किस्म; 120-150 ग्रा. प्रति एकड़
बीज उपचार: ट्रायकोडर्मा (5-6 ग्रा./ 50 मिली. यानि आधा कप पानी में) या कार्बेन्डाज़िम (2-3 ग्रा./ 50 मिली.) या अन्य फफूंदनाशी का घोल बना लें. आधा कप पानी में बना हुआ घोल से 1 कि.ग्रा. बीज उपचारित किया जा सकता है. यदि आपके पास मात्र 10 ग्रा. बीज है, तो आधे कप पानी में तैयार घोल से 10-15 बूंदों को बीज के ऊपर डालें और अच्छी तरह मिला लें. उसके बाद 20-25 मिनट तक छाये में सूखा लें, फिर बुआई कर दें.
रोपाई का समय: अगेती फ़सल (जुलाई-अगस्त); मुख्य फ़सल (अक्टूबर-नवम्बर); गरमा फ़सल (दिसम्बर-जनवरी)
पौध उपचार: 20-25 दिनों के पौध को पौधशाला से प्रत्यारोपण के लिए निकाल लें. उसके बाद पौध के जड़ को ट्रायकोडर्मा (5-7 मिली/ ली.) या कार्बेन्डाज़िम (2-3 ग्रा./ ली.) के घोल में 15 मिनट तक डूबा कर छोड़ दें, फिर रोपाई करें. बीज या पौध उपचार में से कोई एक को ही अपनायें.
दूरी: कम बढ़वार वाले प्रभेद के लिए- कतार से कतार 80 सेमी. तथा पौध से पौध 60 सेमी.
अधिक बढ़वार वाले प्रभेद के लिए- कतार से कतार 90 सेमी. तथा पौध से पौध 75 सेमी.
नोट: टमाटर के पौधों को फल लगने से पहले डंडे के सहारे बांध दें, ऐसा करने से टमाटर के उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता (जैसे: फलों का चमक बढ़ जाना, दाग-धब्बों का न लगना) भी बढ़ जाती है.
मिट्टी: अच्छे जल निकास वाली कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई , दोमट मिट्टी (पी.एच.6.5-7.5) फ़सल के लिए उपयुक्त है.
नर्सरी की तैयारी व देखभाल:
- नर्सरी उगाने के लिए, 3 मीटर x 1 मीटर की 15 सेमी उठी हुई क्यारी बना लें. इस तरह के 12-15 क्यारियाँ में उगाई गई नर्सरी 1 एकड़ खेत के लिए प्रयाप्त है.
- गोबर खाद 25-30 कि.ग्रा., ट्रायकोडर्मा 25 ग्रा. तथा नीम केक 1 कि.ग्रा. प्रति क्यारी के हिसाब से मिला लें.
- यदि पर्याप्त नमी न हो, तो हल्की पानी का फब्बारा देकर खर-पतवार से ढक दें. अंकुरण होने के तुरंत बाद, खर-पतवार को हटा दें.
- 18-20 दिनों बाद, पौध के विकास और जरुरत को देखते हुए एन.पी.के.(19:19:19), 3-4 ग्रा. / ली. के दर से छिड़काव करें.
- नर्सरी में अंकुरण से पहले पानी डालने के लिए हजारे या कीटनाशक छिड़ने वाले मशीन का उपयोग करना अच्छा होता है.
खेत की तैयारी:
- खेत को अच्छी तरह से दो–तीन जुताई कर, मिट्टी को भुर-भूरा बना लें.
- 8-10 टन प्रति एकड़ की दर से सड़ी हुई गोबर खाद डालें और उसके बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं.
सिंचाई: खेत की नमी को ध्यान में रखते हुए, 10 से 12 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करें.
उर्वरक प्रबंधन: किलोग्राम/ एकड़
समय | यूरिया | डी.ए.पी. (डाई) | एम.ओ.पी. (पोटाश) | जिंक सल्फेट | कैलबोर |
रोपाई के समय | 20-25 | 60-70 | 40-45 | 7-8 | |
रोपाई के 30-35 दिन बाद | 25-30 | — | — | 5-8 | |
रोपाई के 50-60 दिन बाद | 25-30 | — | — |
खरपतवार व्यवस्थापन:
- पौध लगाने के पहले, घासनाशक (1 ली. पेंडीमिथिलिन को 9 ली. पानी में मिलायें, अब 10 ली. का घोल तैयार है. इसमें से 1 ली. घोल और 14 ली. पानी लें, फिर इसे 15 ली. वाले टंकी के स्प्रेयर मशीन से छिड़काव करें. इस तरह से एक एकड़ के लिए, आपको 10 बार यानी 150 ली. पानी का छिड़काव करना पड़ेगा) का छिड़काव करें. उसके बाद पौध का रोपाई कर दें.
- पौध रोपाई के ठीक 30-35 दिनों के बाद, बचे खरपतवार को निकौनी कराकर निकल दें
तोड़ाई एवं छंटाई: पौध लगाने के 8-12 सप्ताह के बीच में फल की तोड़ाई कर सकते हैं. फल परिपक्वता से पहले वाले अवस्था में ही तोड़ाई कर अच्छे रंग, बनावट एवं स्वाद को बरकरार रखा जा सकता है.
बाजार की माँग व दूरी को ध्यान में रखते हुए, टमाटर के फलों की छंटाई करनी चाहिए. जैसे- यदि बाजार बहुत दूर हो तो अध-पक्के टमाटर को तथा गहरे लाल एवं ज्यादा पक्के हुए टमाटर को केचप या प्यूरी प्रसंस्करण के लिए भेज देना चाहिए. टमाटर को बाजार तक पहुचाने के लिए बाँस की टोकरी, लकड़ी के बक्से या कैरेट का प्रयोग करना चाहिए. लम्बी दूरी वाले बाजार के लिए मोटे छिलके वाले प्रभेद का चुनाव करना चाहिए.
तोड़ाई के बाद का रख-रखाव: हरेपरिपक्व टमाटर को 10-15°C पर 30 दिनों तक रखा जा सकता है. पक्के हुए टमाटर को 4.5°C पर 10 दिनों तक भंडारण किया जा सकता है. टमाटर भंडारण के लिए 85-90 प्रतिशत आर्दता की जरुरत होती है.
उपज: संकर; 250-350 क्विंटल/ एकड़, किस्म; 120-160 क्विंटल/ एकड़
टमाटर के मुख्य कीट एवं रोग तथा उनका नियंत्रण:
- बीमारी: फल धेदक/ फल बेधक
लक्षण: शिशु कीट फल में छेदकर खाता है, जिससे फल टेढ़े- मेढ़े एवं छोटे हो जाते है और फलों की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है
उपचार: प्रोक्लैम; 0.5 ग्रा./ ली. या फेम; 0.25 मिली/ ली. या बैंजो सुपर; 0.75-1 मिली/ ली. या कोरंडा 505; 0.5-0.75 मिली/ ली.
नोट: उपरोक्त में से कोई एक दवा पौध में फूल निकलते समय छिड़काव करें. तत्पश्चात हर 15 दिनों के अन्तराल पर 3-4 छिडकाव करे. टमाटर लगाते समय, हर 4-5 पंक्ति के बाद एक पंक्ति गेंदा का फूल अवश्य लगायें. इस कीट को प्रति एकड़ 4-5 फेरोमोन ट्रैप/ जाल लगाकर भी नियंत्रित कर सकते हैं. ऐसा कर फल छेदक से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
- बीमारी: पत्ती नकाशी कीट/ लीफ मायनर
लक्षण: यह कीट पतियों पर जालनुमा आकृति बनाता है, यह पतियों के पर्ण हरित को चाट जाता है जिससे बाद में पतिया मुर्झा जाती है और फल उत्पादन कम हो जाता है
उपचार: रोगोरिन; 1-2 मिली/ ली. या जम्प; 0.2 ग्रा./ ली. या कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली.
नोट: उपरोक्त में से कोई एक दवा पौध रोपण के 40-45 दिनों बाद छिड़काव करे.
- बीमारी: किकुड़ी/ पर्ण कुंचन
लक्षण: पतियों पर पर्णहरित का अभाव हो जाता है और पतियाँ कुंचित हो जाती है. यह एक वाइरसजनित रोग है जो की सफ़ेद मक्खी के द्वारा एक पौध से दुसरे पौध में फैलता है.
उपचार: कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या जम्प; 0.2 ग्रा./ ली. या उलला; 0.25 ग्रा./ ली. या रोगोरिन; 1-2 मिली/ ली.
नोट: ज्यादा प्रभावित पौधों को उखाड़ कर खेत से दूर मिट्टी में दबा दे.
- बीमारी: चूर्णिल आसिता/ पाउडरी मिल्डेव
लक्षण: यह फफूँद से होने वाला रोग है, जिसमें पतियों पर सफ़ेद धब्बे बन जाते हैं और बाद में पतियाँ सुख जाती है.
उपचार: अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली.
- बीमारी: गलका/ गलुआ/ आद्र पतन रोग
लक्षण: यह मुख्यतः नर्सरी में लगने वाली भयंकर बीमारी है, जिसमें पौधे के जड़ के पास या बीच वाला भाग गल जाता है. जिसके कारण से पौध के ऊपरी भाग का वजन तना सहन नहीं कर पाता है, इसलिए पौधे जमीन पर गिर जाते हैं.
उपचार: साफ़; 2.5 ग्रा./ ली. या मेटको 8-64; 2.5 ग्रा./ ली. या नेटिवो 0.5 ग्रा./ ली.
- बीमारी: सूत्र कृमि/ जड़ ग्रंथि रोग
लक्षण: इस बीमारी से पौधों की जड़े गाठनुमा हो जाते हैं, जिससे पौधे भूमि से पोषण नहीं ले पाते हैं. जिसके वजह से पौध का विकास रुक जाता है और वह बौने दिखने लगते हैं.
उपचार: कार्बोफ्यूरान 3 जी; 7-8 कि.ग्रा./ एकड़ या थिमेट; 20 जी 7-8 कि.ग्रा. या लेसेंथा; 150-200 ग्रा./ एकड़ की मात्रा का प्रयोग खेत के अंतिम तैयारी के समय करें.
नोट: सूत्र-कृमि प्रभावित खेतों में, फ़सल के साथ गेंदा का फूल लगा दें. फ़सल कट जाने के बाद खेत की 1-2 जुताई कर दें और धूप लगने दें. ऐसा करने से गेंदा के पौध के जड़ का रसायन सक्रीय हो जाता है, जो सूत्र-कृमि को मार देता है.
- बीमारी: लाल मकड़ी/ रेड माईट्स
लक्षण: टमाटर पौध के ऊपर जाली का बनना तथा पत्तियों के ऊपर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बों का दिखाई पड़ना. रोग के उग्र अवस्था में पत्तियाँ पीला होकर सूख जाती हैं. चूँकि मकड़ी का रंग लाल होता है, इसलिए कीटों की संख्या अधिक होने से कभी-कभी पत्तियों का रंग लाल भी दिखता है.
उपचार: ऑबेरान,0.5-1.0 मिली/ ली. या ओमाईट, 0.75-0.1 मिली/ ली. या इंडोमाईट, 0.75-0.1 मिली/ ली.
- बीमारी: अगेती झुलसा
लक्षण: टमाटर की पतियों पर भूरे व काले रंग के छोटे-छोटे अनियमित धब्बे बनते हैं जो रोग की उग्र अवस्था में एक साथ मिलकर बड़े आकार ले लेते हैं और पतियों को जला देते हैं.
उपचार: इंडोफिल एम 45, 2-3 ग्रा./ ली. या एन्ट्राकाल, 2-2.5 ग्रा./ ली. या ब्लाटोक्स 2-3 ग्रा./ ली
- बीमारी: पछेती झुलसा
लक्षण: पुराने पतियों और तनों पर अनियमित आकार के भूरे ग्रीस के जैसे धब्बे बनते है. जो पतियों को अंत में सुखा देते है. रोग की उग्र अवस्स्था में फल सड़ने लगते हैं.
उपचार: सेक्टिन; 3-4 ग्रा./ ली. या मैट्को 8-64; 2.5 ग्रा./ ली. या रिडोमिल एम. जेड; 3 ग्रा./ ली. या मेटालाक्सिल; 2-2.5 ग्रा/ ली.
- बीमारी: फ्यूजारियम विल्ट/ पत्तियों को मुरझाना
लक्षण: यह एक फफूँदजनित बीमारी है. फ्यूजारियम विल्ट का लक्षण फूल और फलन के बीच वाले समय में नजर आता है. इसके कारण से पत्तियाँ मुरझा कर पीली पड़ जाती है और बाद में पौधे सूख जाते हैं. यह बहुत ही खतरनाक रोग है.
उपचार: बीमारी लगने के बाद फ़सल को बचाना मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी से फ़सल को बचने के लिए कुछ सुझाव-
- फ़सल-चक्र को अवश्य अपनायें
- यदि मिट्टी का पी.एच. 6 से कम हो, तो यह फफूँद तेज़ी से फैलता है. अतः मिट्टी का जाँच अवश्य करायें.
- सुडोमोनास फ्लोरेसेंस (1-1.5 कि.ग्रा./ एकड़) से मिट्टी को उपचारित करें.
- विल्ट रोग प्रतिरोधी प्रजाति का चुनाव करें.
- अमोनियम नाईट्रेट का उपयोग नहीं करें.
टमाटर के फ़सल पर रोगनिरोधी व रोग निवारक छिड़काव: नीचेतालिका में बताये गये समय तथा क्रांतिक अवस्थाओं पर सूक्ष्म-पोषक, दवा, पौध टॉनिक इत्यादि का छिड़काव कर टमाटर की खेती में आने वाले लागत खर्च को कम किया जा सकता है. रोगनिरोधी व रोग निवारक छिड़काव कर, फसल को लम्बे समय तक फलदार तथा निरोग रखा जा सकता है.
छिड़काव का समय | उद्देश्य | सूक्ष्म-पोषक/ दवा/ पौध टॉनिक |
रोपाई के 8-10 दिनों बाद | रोग वाहक कीटों पर नियंत्रण | कॉन्फीडोर; 0.75-1 मिली/ ली. या विक्टर; 0.75-1 मिली/ ली. या जम्प; 0.2 ग्रा./ ली. या अन्य |
रोपाई के 15-17 दिनों बाद | पौध के समुचित विकास के लिए | मिराकुलान; 1-1.5 मिली/ ली. या टर्क; 0.6-0.8 ग्रा./ ली. या अन्य |
फूल निकलने की अवस्था में | पुष्प धारण क्षमता बढ़ाने में | प्लानोफिक्स; 0.2 मिली./ ली. या वुमफ्लावर; 1-1.5 मिली/ ली. या अन्य |
रोपाई के 40 दिन बाद (2-3 बार, 10 दिनों के अंतराल पर) | फ़सल के प्रतिरोधक क्षमता और आतंरिक ताकत के लिए | जिंक सल्फेट; 5-6 ग्रा./ ली. |
पहली तोड़ाई के बाद (3-4 बार, 15 दिनों के अंतराल पर) | बार-बार तोड़ाई से पौध में उर्जा की कमी को पूरा करने के लिए | एन.पी.के.(19:19:19); 5-7 ग्रा./ ली. |
रोपाई के 25-30 दिनों बाद | किकुड़ी/ पर्ण कुंचन पर नियंत्रण | कॉन्फीडोर; 0.25 मिली/ ली. या लिथाल सुपर; 0.75-1 मिली/ ली. या जम्प; 0.2 ग्रा./ ली. या अन्य |
फल लगाने के 5-10 दिनों बाद | फफूँद रोग से बचाव के लिए | अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली. |
फल लगने के 15-20 दिनों बाद | लाल मकड़ी से रोक-थाम के लिए | ओमाईट; 1-2 मिली/ ली. या ओबरन; 1-2 मिली/ ली. या इंडोमाईट; 2-3 मिली/ ली. या अन्य |
नोट:एक एकड़ के छिड़काव के लिए, 150-200 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है.