गेंहूँ फसल की उन्नत उत्पादन तकनीक
उन्नत प्रभेद: अच्छेऊपज के लिए करन नरेंद्र, करन वंदना, डी.बी.डब्लू. 252, एच.डी. 2967 या कोई अन्य किस्म, जो स्थानीय मौसम, ग्राहक की माँग व बाजार के अनुरूप हो, वैसे प्रभेद का ही चुनाव करना चाहिए.
प्रभेदें | संस्थान/ कम्पनी | प्रभेदों की विशेषताएँ |
करन नरेंद्र | आई. आई. डब्लू. बी. आर., करनाल | अवधि: 143 दिन प्रतिरोधक: स्ट्रिप और लीफ रस्ट ऊपज: 61-62 क्विंटल/ हे. |
करन वंदना | आई. आई. डब्लू. बी. आर., करनाल | अवधि: 148 दिन प्रतिरोधक: स्ट्रिप और लीफ रस्ट तथा ब्लास्ट ऊपज: 61-62 क्विंटल/ हे. |
डी.बी.डब्लू. 252 | आई. आई. डब्लू. बी. आर., करनाल | अवधि: 127 दिन प्रतिरोधक: सब्लास्ट ऊपज: 37-38 क्विंटल/ हे. |
डी.बी.डब्लू. 173 | आई. आई. डब्लू. बी. आर., करनाल | अवधि: 122 दिन प्रतिरोधक: पीला और भूरा रस्ट ऊपज: 46-47 क्विंटल/ हे. |
डी.बी.डब्लू. 47 | आई. आई. डब्लू. बी. आर., करनाल | अवधि: 121 दिन ऊपज: 36-37 क्विंटल/ हे. |
मौसम: क्षेत्रीय प्रचलन के अनुसार
मिट्टी: अच्छे जल निकास वाली बलुई, दोमट मिट्टी फ़सल के लिए उपयुक्त है.
बीज-उपचार: बुआई से पहले, बीज की अंकुरण क्षमता की जाँच अवश्य कर लें. बीज यदि शोधित न हो तो 2.5 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज की दर से वेबस्टिन/ थाइरम से बीज को उपचारित करें. बुआई से 24 घंटे के पहले बीज को उपचारित कर लें.
बीज दर: 40 कि.ग्रा./ एकड़
दूरी: कतार से कतार की दूरी 17-20 से.मी. रखते हुए लगातार बीज गिरायें.
विभिन्न परिस्थितियों में उपयुक्त उन्नत प्रभेद, बीज दर एवं बुआई समय:
परिस्थिति | बुआई का समय | प्रभेद अवधि का चुनाव | बीज दर |
असिंचित | 15 अक्टूवर-15 नवम्बर | 135-140 दिन | 40 कि.ग्रा./एकड़ |
सिंचित (समय पर बुआई) | 15 नवम्बर-15 दिसम्बर | 125-130 दिन | 40 कि.ग्रा./एकड़ |
सिंचित (बिलम्ब से बुआई) | 10 दिसम्बर –दिसम्बर अंत तक | 110-115 दिन | 50 कि.ग्रा./एकड़ |
खेत की तैयारी / बुआई: बुआई में लागत खर्च कम करने के लिए ज़ीरो-टिलेज पद्धति कोअपनायें याखेत की दो अच्छी जुताई कर मिट्टी को भुर-भूरा बना लें और फिर बुआई कर दें.
उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि:
समय | उर्वरक (कि.ग्रा./ एकड़) | प्रयोग विधि |
सिंचित (समय पर बुआई) | यूरिया:80-100, डी.ए.पी.:40-50 पोटाश:25-30 | यूरिया की आधी तथा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा को मिलाकर बुआई कर दें.बचे हुए यूरिया को दो बराबर भागों में बाँटकर प्रथम एवं द्वितीय सिंचाई के बाद उपरिवेशित करें. |
सिंचित (बिलम्ब से बुआई) | यूरिया:60-70, डी.ए.पी.:35 पोटाश:15-17 | यूरिया की आधी तथा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा को मिलाकर बुआई कर दें.बचे हुए यूरिया को प्रथम सिंचाई के समय उपरिवेशित करें. |
असिंचित | यूरिया:35, डी.ए.पी.:25 पोटाश:12 | यूरिया की आधी तथा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा को मिलाकर बुआई कर दें.वर्षा होने पर,बचे हुए यूरिया को खड़ी फ़सल पर उपरिवेशित करें. |
नोट: यदि आप जिंक सल्फेट (8-10 किलो/ एकड़) का प्रयोग धान की खेती में कर चुके हैं, तो गेंहूँ की बुआई के समय नही करें.
खर-पतवार नियंत्रण: गेंहूँ में उगने वाले खर-पतवारों को नियंत्रण के लिए बुआई से 30-35 दिन के बीच में अटलांटिस (1 ग्रा./ लि.) या किसी अन्य घासनाशी का प्रयोग करें.
सिंचाई: गेंहूँ की सिंचाई जल की उपलब्धता के आधार पर निम्न क्रांतिक अवस्थाओं पर करनी चाहिए:
सिंचाई की उलब्धता | फ़सल की क्रांतिक अवस्था | बुआई के कितने दिन बाद |
एक सिंचाई | शीर्ष जड़े निकलते समय | 20-25 दिनों बाद |
दो सिंचाई | शीर्ष जड़ें निकलने के समय तथा बाली निकलते समय | 20-25 दिनों एवं 80-85 दिनों बाद |
तीन सिंचाई | शीर्ष जड़ें निकलने के समय, गाभा के समय तथा दानों में दूध भरते समय | 20-25, 65-70 तथा 90-100 दिनों बाद |
चार सिंचाई | शीर्ष जड़ें निकलने के समय, कल्ले निकलने की अंतिम अवस्था में, गाभा के समय तथा दानों में दूध भरते समय | 20-25, 40-45, 65-70 तथा 90-100 दिनों बाद |
नोट: गेंहूँ की बाली निकलने के बाद तेज हवा चलने की स्थिति में सिंचाई नहीं करें.
कटाई: गेंहूँ की फसल पकने के बाद पूरा खेत सुनहरे रंग का हो जाता है. फसल की कटाई हसिया से करके थ्रेसर के द्वारा दानों को निकाल लेते हैं या फिर सीधे खेत से हार्वेस्टर के द्वारा कटाई कर दानों को निकाल लिया जाता है.
भण्डारण: अनाज से मिट्टी के कणों एवं बलुरी को निकाल कर साफ कर लें. उसके बाद बोरियों को गेंहूँ के भूसा से ढँककर भण्डारण करें. ऐसा करने से पूरे साल अनाज का चमक बरक़रार रहता है. गेंहूँ को नमी से दूर रखें.
ऊपज: फ़सल की ऊपज, प्रभेद का चुनाव, बुआई और खेत की परिस्थिति, सिंचाई की क्रांतिक अवस्थाओं पर जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है.
गेंहूँ के मुख्य रोग एवं कीट तथा उनका नियंत्रण:
- बीमारी: लूज स्मट
लक्षण: यह एक फफूँदजनित बीमारी है, जो सामान्यतः फसल में बाली निकलने के समय या निकलने के बाद लगता है. यह फफूँद बालियों को कालिख के समान काला कर देता है, जिससे फसल के ऊपज एवं दानों के गुणवत्ता दोनों प्रभावित होते हैं.
उपचार: टिल्ट; 1 मिली/ली या धन; 1 मिली/ली या विजेता; 1 मिली/ली या अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली.
- बीमारी: करनाल बंट
लक्षण: यह रोग बीज या मिट्टी से पैदा होने वाले फफूँद के कारण होता है. जिसमें बालियाँ छोटे एवं दाने काले पड़ जाते है. इस रोग को पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है. यह बीमारी, गेंहूँ के दानों के अवस्था से ही शुरू हो जाती है.
उपचार: टिल्ट; 1 मिली/ली या धन; 1 मिली/ली या अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली.
- बीमारी: चूर्णिल आसिता/ पाउडरी मिल्डेव
लक्षण: यह फफूँद से होने वाला रोग है, जिसमें पतियों पर सफ़ेद धब्बे बन जाते हैं और बाद में पतियाँ सुख जाती है.
उपचार: अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली.
- बीमारी: झुलसा/ ब्लास्ट
लक्षण: गेंहूँ का झुलसा रोग फफूँद से होता है, जिसमें बालियाँ आधी हरी और आधी सूखी हुई दिखती है. तना और पत्तियों बदरंग होने लगते हैं. इस रोग कारण से दाने मार खा जाते हैं. साथ-ही-साथ गुणवत्ता पर भी कभी असर पड़ता है.
उपचार: कोंटाफ प्लस; 0.8- 1 मिली./ ली. या टिल्ट; 1 मिली/ली या अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली.
5. बीमारी: रस्ट/ रतुआ
लक्षण: यह फफूँद से होने वाला रोग है, जिसमें पतियों पर लाल या भूरे रंग के धारीदार या अलग-अलग जगहों दाग-धब्बे बन जाते हैं और बाद में पतियाँ धीरे-धीरे सुखने लगाती है और फसल का विकास धीमा हो जाता है.
उपचार: अमिस्टर; 0.8-1.0 मिली./ ली. या अंट्राकोल; 2.5 ग्रा./ ली. या बून; 0.5 ग्रा./ ली. या साफ़; 2.5 ग्रा./ ली.
- कीट: दीमक
लक्षण: यहहल्के पीला/ सफेद रंग का छोटे कीट होते है, जो अधिकतर बलुई मिट्टी वाले खेतों में पाए जाते हैं. बलुई खेतों में नमी बहुत जल्द भाग जाता है और यही वजह है कि जिस खेत में नमी हमेशा बरक़रार रहती है, उसमें दीमक नही लगते हैं. अतः खेत की हल्की सिंचाई कर, फसल में दीमक का दवा छिड़काव करें.
उपचार: लीथल सुपर 505; 0.5-1 मिली/ ली या रीजेंट धूल; 3-4 कि.ग्रा./ एकड़ (खेत तैयार करते समय)